तेरे शहर के मेरे लोग - 18

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( 18 )मैंने देखा था कि जब लोग नौकरी से रिटायर होते हैं तो इस अवसर को किसी जश्न की तरह मनाते हैं। ये उनकी ज़िंदगी के जीविकोपार्जन के सफ़लता पूर्वक संपन्न हो जाने का मौक़ा होता है। एक ऐसा मुकाम जिसके बाद ज़िन्दगी का ढलना शुरू हो जाए। जैसे शाम का सूरज। इस मौक़े पर वो बताते हैं कि वे ऐसे थे, वैसे थे, उनमें ये खूबी थी, वो अच्छाई थी...बस, और कुछ नहीं। ये ज़िक्र कोई नहीं करता कि उनमें क्या कमी थी। जो हुआ, जैसे हुआ, जैसा हुआ उसके लिए एक दूसरे से क्षमा मांगी जाती है,