घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम - भाग-2

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घाट–84 ‘‘रिश्तों का पोस्टमार्टम’’ (भाग-3)नहीं–नहीं वो ऐसा नहीं कर सकती वो तो कितनी प्यारी है, लेकिन ? मेरे मन में फिर से सवालों का ज्वार–भाटा उठने लगा ।अरे काशी विश्वनाथ जी कैसा स्वागत करे हो अपनी नगरी में! मैंने आसमान की तरफ देखकर मन में कहा । फिर जल्दी से डायरी को बैग में रखने लगा तो हाथ सेे कुछ टकराया । बैग को अच्छे से टटोला तो नोकिया 1100 के पीछे का कवर हाथ लगा । अरे ये तो मेरे फोन का है । मैंनेे बुदबुदाते हुए बैग को फिर अच्छे से चेक किया तो मेरा फोन उसी में