ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' आइने का सच ‘‘बोर्ड के इम्तहान हैं न इस साल! पढ़ाई पर ध्यान दिया करो और इस मोबाइल से दूर रहा करो! समझ गए न!’’ बेटे को मैंने सख़्ती से ताकीद की तो उसने मोबाइल एक तरफ़ रखकर किताब उठा ली. फिर मैं अपने कमरे में आ गया और अपने मोबाइल फोन को खोलकर उसमें आए मैसेज आदि देखने लगा. तभी बेटे के कुछ कहते हुए इस कमरे में आने की आवाज़ आई - वह शायद पढ़ाई से सम्बन्धित कोई बात पूछना चाहता था. मैंने झट-से फोन एक तरफ़ रख दिया और पास पड़ा