मुन्नी जैसे तैसे होश को संभालते हुए घर पहुँची एक अदना सी उम्मीद लिए,कि शायद उसके बाबा उसके साथ ऐसा नहीं करेंगे, उसकी ये सारी शंकाऐ तो अब सिर्फ बाबा ही दूर कर सकते थे,(उम्मीदों को लगाना कभी से बुरा ना हुआ ना ही कभी होगा,मगर बुरा है तो उन उम्मीदों का टूट जाना ) खासकर ऐसे इंसानों से लगाई गई उम्मीदें जिन्होंने हमें बचपन से ही उम्मीद लगाना सिखाया हो,मुन्नी का गला अब सूख चुका था मुन्नी ने अपना बस्ता पटकते हुए अपने कमरे का दरवाजा मूंद लिया,रे मुन्नी क्या हुआ -मुन्नी की मां ने आवाज लगाई, क्या हुआ