1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की - 2

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1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की प्रियंवद (2) ‘‘पर ये सब वाक्य तो बिल्कुल सिलसिले से हैं। एक तयशुदा तरीके से स्पष्ट और निश्चित अर्थ दे रहे हैं‘‘? ‘‘हाँ...पर यहीं तक। इसके बाद वह खिड़की से हट कर पलंग पर बैठ गए। कुछ देर बाद थकी और टूटी आवाज मे बोले ‘दुनिया अब आखरी क्रांति की ओर बढ़ रही है। इसके बाद धरती पर मनुष्यों के लिए कभी कुछ नहीं बदलेगा। इसलिए कि मनुष्य खुद गुलामी से प्यार करने लगेगा। उस तानाशाह को मसीहा की तरह देखेगा जो उन्हें बिना यंत्रणा दिए कैद में रखेगा। इसलिए भी