ज़िन्दगी की धूप-छाँव - 9

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ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' लालच लोकल बस से उतरकर मैं तेज़-तेज़ कदम बढ़ाते हुए अपने दफ़्तर की तरफ़ बढ़ रहा था. आज तो दफ़्तर पहुँचने में कुछ ज़्यादा ही देर हो गई थी. तभी सामने से आ रहे एक नवयुवक ने मुझसे कोई पता पूछा. उसके पूछने के तरीक़े से लग रहा था जैसे वह पहली बार दिल्ली में आया हो. मैं झुँझला-सा उठा. ‘इसे पता बताने लगा तो और देरी से पहुँचूँगा दफ़्तर’ एकाएक यही बात मेरे दिमाग़ में आई, लेकिन तभी मेरी नज़र उस नवयुवक के साथ खड़ी नवयुवती पर पड़ी. नवयुवती वाकई बहुत ही सुन्दर