आज का सारा काम बाकी रहा था मेरा और अब हिम्मत भी नहीं थी। ६बजे करीब घर पहुंची। बहन ने चाय पिलाया। मन दुखी था मेरा। कल से एक पूरा सप्ताह था सामने - थके शरीर और मन के साथ। अगले दिन फोन की आवाज से नींद खुली, "अभी इस नंबर पर कॉल करो।" हर्ष था दूसरी तरफ। घबरा गई मैं , क्या हुआ? कहां का नंबर है। फोन उठाया। उफ़, नो बैलेन्स। कल सोचा था रिचार्ज करवाऊंगी ,पर समय नहीं मिला। बाहर दौड़ी मैं बूथ पर। ठंड में नजदीक का बूथ भी सुबह ६:३० बजे तक खुला नहीं था। क्यों उठेगा