तेरे शहर के मेरे लोग - 11

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( ग्यारह )इस नए विश्वविद्यालय का परिसर शहर से कुछ दूर था। हमारे सारे परिजन शहर में ही रहते थे। और इतने सालों बाद अब यहां आकर रहने पर ये तो तय ही था कि सब मिलने - जुलने आयेंगे, हमें बुलाएंगे।अभी तक तो हम जब भी यहां आते थे तो मेहमानों की तरह ही आते थे और उन्हीं में से किसी के घर ठहर कर सबसे मिलना - जुलना करते थे।किन्तु अब हम स्थाई रूप से यहां रहने आ गए थे। तो सभी को कम से कम एक बार तो आना ही था।अतः यही सोच कर हमने विश्वविद्यालय परिसर