मृगतृष्णा--भाग(५) - अंतिम भाग

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शाकंभरी, राजलक्ष्मी के विचार सुनकर घोर चिंता में डूब गई, राजलक्ष्मी की इन गूढ़ बातों का शाकंभरी के पास कोई उत्तर ना था और ये सारी बातें महाराज अमर्त्यसेन भी सुन रहे थे।। आते-जाते अपार की दृष्टि शाकंभरी पर पड़ ही जाती,वो उसकी सुंदरता पर मोहित नहीं था,उसकी सरलता और सौम्यता उसे भा गई थीं, उसका व्यवहार साधारण था कोई राजसी झलक नहीं थी उसके व्यवहार में,हर बात का सहजता से उत्तर देना, सदैव दृष्टि नीचे रखकर बात करना,मुख पर सदैव एक लज्जा का भाव रहना,बस ये सब बातें ही अपार को भा गई और ये सब गुण उसे