तेरे शहर के मेरे लोग - 8

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( आठ )इन्हीं दिनों एक चुनौती मुझे मिली।ज़रूर ये अख़बारों के माध्यम से बनी मेरी छवि को देख कर ही मेरी झोली में अाई होगी।इस चुनौती की बात करूंगा और इसका अंजाम भी आप जानेंगे किन्तु इससे पहले एक छोटा सा किस्सा सुनिए।मेरा नाटक "मेरी ज़िन्दगी लौटा दे" छप चुका था जिसमें एक उच्च जाति के युवक का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वो पिछड़ी कही जाने वाली जाति का मुरीद हो जाता है। इस नाटक पर मुझे महाराष्ट्र दलित साहित्य अकादमी का प्रेमचंद पुरस्कार मिलने की सूचना मिली।मैं ये पुरस्कार लेने के लिए महाराष्ट्र गया तो यात्रा में