मृगतृष्णा--भाग(३)

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शाकंभरी, विभूति के जाने के उपरांत तनिक गम्भीर हो चली थी, उसने सोचा यदि विभूति को उसने क्षमा कर दिया होता तो..... परंतु उसका अपराध क्षमायोग्य नहीं था, किसी भी स्त्री को उसकी अनुमति के बिना स्पर्श करना...... उसके उपरांत प्रेम की दुहाई देना,वासना पर प्रेम का आवरण डाल देना ये कदापि भी अनुचित नहीं है।। मैंने उसके साथ उचित व्यवहार किया, कोई और भी होता तो ऐसा ही करता, परंतु मेरा मन विभूति के चले जाने से खिन्न क्यो है, मेरा हृदय इतना विचलित हैं, मस्तिष्क में भी कई प्रश्न उठ रहे हैं, कहीं ऐसा तो नहीं