तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 13 - सपनों की मंजिल

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"आ भी जा, आ भी जा....." लकी अली का स्वर गूंजता कहीं भी और छोटे रिशी की याद बेचैन कर देती मुझे। हर सुबह लगता कि आंखे खोलने पर छुटकी सामने होगी - "दीदी, चाय पियोगी। " और वासु जिससे खूब लड़ाई होती रहती थी घर में, उसकी खूब याद आती थी मुझे। बार - बार मम्मी - पापा का चेहरा याद आता, कुछ नहीं अच्छा लग रहा था मुझे यहां। मेरी रूम मेट और हॉस्टल के अन्य बैच मेट सब खुश नजर आते। नए शहर , नई स्वतंत्रता का सब भरपूर आनंद ले रहे थे। मौसीमां चौक पर स्थित