दह--शत [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] एपीसोड -2 समिधा ने समिधा इतवार को दरवाज़ा खोला, देखा कविता हाथ में रुमाल से ढकी प्लेट लिए खड़ी है, सुन्दर साड़ी में ऊपर से नीचे तक सजी धजी। वह सकुचा जाती है। आज इतवार है सारा घर और वह सुबह ग्यारह बजे तक अलसाये हुए से हैं। ये बनी संवरी तारो ताज़ा आई है। वह कहती है, "आओ --आओ। " "नमश्का---र जी."कहते हुए कविता अंदर आ गई। वह उसे ड्राइंग रूम में से होते हुए अंदर बरामदे में ले आई। कविता डाइनिंग टेबल के सामने की कुर्सी खींचकर बैठ गई, "आप तो हरियाली तीज