मै तम्शी। बालकनी में बैठी चाय की चुस्कीयों के साथ बाहर मैदान में पसरी धूप की किरणों को निहारते हुए यह सोचने लगती हूँ। सूरज की किरणे भी इस जनवरी की सर्दी को कम नहीं कर पा रही हैं जिसका कारण शायद बर्फीली हवाएँ है। जो सुबह से ही चल रही थी। मै अभी और कुछ सोच पाती इतने में एक ठंडी हवा का झोका मेरे बालों को सहलाता हुआ कहीं दूर निकल गया। ये हवा मेरे होठों पर एक हल्की सी मुस्कान का सौगात लेकर आई थी। जिसे मैंने चाय के प्याले से निकालकर ख़ुद में डूबो दिया। मै