तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 5 - वो पहली मुलाकात

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हर्ष, हर्ष - मिलना चाहता है मुझसे। कायनात थम सी गई एक क्षण के लिए। अभी सुनी बात पर कानों को जैसे विश्वास नहीं हो पा रहा था। "क्या कहा तुमने?" मैंने अपनी ही आवाज सुनी। लगा, शायद गिर ही जाऊंगी मैं। इस क्षण की प्रतीक्षा सालों से की थी मैंने। प्रतीक्षा की तो जैसे आदत सी हो गई थी और अचानक उसका खत्म हो जाना। जैसे चिर निद्रा में विलीन किसी तपस्वी को कोई जोर से जगा दे। निद्रा में ही तो थी मैं - कई कई सालों से। और एक झटके से वो निद्रा तोड़ दी गई। हमेशा कल्पनाओं में इस