संडे का दिन... आज जब सुबह-सुबह जाग कर छत अपनी आदतानुसार छत पर टहल रही थी। तभी नज़र सामने वाले मकान पर पड़ी। एक लड़कीं जो मुझसे उम्र में दो साल छोटी ही रही होगी, अपनी बालकनी में खड़ी हो कर नीचे देख रही थी। मैंने भी उसकी बालकनी के नीचे की तरफ देखा, सामने का द्रश्य देखकर मैं रैलिंग से हाथ टिकाकर खड़ी हो गयी। सामने उसी लड़कीं का हमउम्र लड़का हाथों में एक गुलाबी रंग का रोज लेकर कान पकड़े खड़ा था। शायद वो लड़कीं उससे गुस्सा थी और वो उसे मनाने की जद्दोजहद कर रहा था। वो