जैकगोवर्धन और शेखन एलिज़ाबेथ

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मैं बरामदे में बैठा हुआ अख़बार पढ़ रहा था कि मेरी आठ वर्षीया बेटी दौड़ी दौड़ी आई और बोली- पापा पापा, आप कहते थे न कि सवेरे सवेरे देखा हुआ सपना सच होता है? तो आज मैंने बिल्कुल सुबह एक सपना देखा पापा... - अच्छा! क्या देखा? मैंने कहा। यद्यपि मैं ये भी भूल चुका था कि कभी मैंने ऐसा कुछ कहा था। - पापा, मैंने देखा कि मैं खूब सारे वोटों से चुनाव जीत गई और मैं... मैंने चौंक कर अख़बार को परे किया ही था कि बिटिया की मम्मी भी आ गई। वो बोली- सपना वपना कुछ नहीं