मई महीना बहुतों को गर्मी की चिपचिपाहट से भरा लगता है पर मेरे लिए तो हमेशा से यह रूमानियत वाला रहा है । इसकी शुरुआत उस साल से होती है जिस साल मुझे तुम्हारा खत मिला था । सभी दृश्य मेरी आंखों के सामने स्पष्ट हैं। मई की वह दोपहर, आकाश मेघाच्छादित था और मेरे मन पर तो वसंत ऋतु छाया था। लखनवी गुलाबी कुर्ता पहनी मैं, तन मन से भी गुलाबी हो रही थी। पहला सलवार कुरता था वह मेरा । बड़ी दी की शादी में मम्मी ने दिलवाया था।आज तुम्हारा खत आने वाला था। सुबह से ही उस