एक मध्यम वर्गीय आदमी

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इस नॉवेल के टाइटल से ही पता चलता है, जो भी है वो मध्यम है, ना कम ना ज्यादा। सच बताऊं तो हम जैसे मध्यम वर्गीय आदमियों की कहानी यहीं है। अरे हमारी तो जरुरते, शोख, और पगार भी दोस्तो मध्यम ही होता है। बचपन से ही सिखाया जाता है, ये करना है और इसके आगे नहीं जाना है। और जो भी हो इतने पैसों और यहां तक ही करना है। बचपन में देखे हुए सपनों को बड़े होते होते छोटा कर देना पड़ता है। बस फिर क्या है, यूहीं उसी मध्यम वर्गीय सपनों को पाने में अपना जीवन खर्च