औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन एक जिंदगी और तीन औरतें मैं हूं उज्ज्वला: जनवरी, 2006 1 मामूली औरतें जिंदगी... कल तक अगर मुझसे बयां करने को कहा जाता, तो कहती- ऊंची-ऊंची राहों पर चलकर एक ठीक से मुकाम तक पहुंचने का नाम है जिंदगी। कल यानी सोलह महीने पहले तक। आज कहने का मन हो रहा है- अनजानी गलियों से गुजरने का दर्दभरा रोमांचकारी सुख जिस अनचाहे और अनचीन्हे मुकाम तक ले जाता है, कमोबेश वही जिंदगी है। मैं पैंतीस के आसपास पहुंची एक मामूली औरत कितनी दार्शनिक बातें करने लगी हूं। मुझे जानता कौन था। कोई नहीं। साथ काम