लाचारी

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समझ में आता है कि किस प्रकार कोई व्यक्ति ना चाहते हुए भी दुनिया की चमक धमक से समझौता करता है उसे पता होता है कि शासन तंत्र के बहुत सारे निर्णय गलत हैं वह बहुत कुछ लिखना भी चाहता है बोलना चाहता है लेकिन नहीं लिख पाता न ही बोलता पाता है,आखिर वह किसी विचारधारा से जो जुड़ा है अगर वह व्यक्ति शासन तंत्र की कमियों को सबके साथ साझा करें तो जो लोग उसके साथ संगठनात्मक वैचारिक रूप से जुड़े हैं या सामाजिक लोग जो शासन तंत्र का पुरजोर समर्थन करते हैं वही सर्वप्रथम उसका विरोध करते हैं