सेज गगन में चाँद की [ 1 ] "धरा ... ओ धरा... बेटी धरा...." माँ ने गले की तलहटी से जैसे पूरा ज़ोर लगा कर बेटी को आवाज़ लगाई।सपाट सा चेहरा लिए धरा सामने आ खड़ी हुई।बेटी के चेहरे पर अबूझा डोल देख कर बुढ़िया मानो फिर टिटियाई- "रोटी.... रोटी की कह रही थी मैं। धरा मानो कुछ समझी ही नहीं, वह अपनी माँ को उसी तरह घूरती हुई जस की तस खड़ी रही। उसकी माँ को सभी भक्तन माँ कहते थे। सभी से सुन-सुन कर कभी-कभी वह भी भक्तन माँ ही बोल बैठती थी। भक्तन ने अबकी बार अपने सुर में थोड़ी