सांकल - 1

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सांकल ज़किया ज़ुबैरी (1) क्या उसने अपने गिरने की कोई सीमा तय नहीं कर रखी? सीमा के आंसुओं ने भी बहने की सीमा तोड़ दी है...। इंकार कर दिया रुकने से....। आंसू बेतहाशा बहे जा रहे हैं....। वह चाह रही है कि समीर कमरे में आए और एक बार फिर अपने नन्हें मुन्ने हाथों से सूखा धनिया मुंह में रखने को कहे, ताकि उसके आंसू रुक सकें I बचपन में ऐसा ही हुआ करता था कि समीर माँ की आँखों से बहते हुए आंसू देखकर बेचैन हो उठता और लपक कर मसालों की अलमारी के पास पहुंच जाता, उचक उचक कर मसाले की बोतलें खींचने लगता; पंजों के बल खड़े खड़े जब थक जाता तो कुर्सी