एक विधवा और एक चाँद नीला प्रसाद (3) ये चाँद कोई भ्रम तो नहीं! अजित और मान्या कुर्सियों पर बैठ गए- आमने-सामने। ओह! अजित उसके ठीक बगल में उसका हाथ अपने हाथों में लेकर क्यों नहीं बैठता? कुछ पलों की चुप्पी जब सीने पर रखा पहाड़ बन जाए तो बोलना पड़ता है। मान्या की आवाज किसी दूसरी दुनिया से जबरन खींच लाई गई। वह अब भी खोई-सी थी। 'कुछ कहना चाहती हूँ अजित!' अजित की मुस्कराहट ने हामी का संकेत दिया, तो मान्या ने हिम्मत जुटाई- 'दो आत्मनिर्भर लोगों के साथ में, मेरे जाने- सिर्फ और सिर्फ दिल का रिश्ता