बुरी औरत हूँ मैं (1) झुरमुटी शामों में उदास पपीहे की पीहू पीहू कौंच रही थी सीना और नरेन हर लहर से लड़ रहा था, समेट रहा था खुद को जब भी किसी दरीचे में कोई न कोई लहर आकर छेड़ जाती सुप्त तारों को और फिर शुरू हो जाती एक और जद्दोजहद कभी वक्त से तो कभी खुद से. काश दिल एक जंगल होता जहाँ होते सिर्फ शेर चीते बाघ लोमड़ियाँ या फिर पेड़ पौधे और कंटीली झाड़ियाँ तो शायद इतना संघर्ष न करना पड़ता उसे.....नहीं नहीं, जंगल में भी जंगली जानवरों से लड़ना पड़ता है खुद के अस्तित्व