दास्ताँ ए दर्द ! - 16

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दास्ताँ ए दर्द ! 16 हीथ्रो, बहुत बड़ा, लोगों से भरचक हवाईअड्डा ! और कोई पल होता तो सत्ती न जाने कितनी ख़ुश होती, उछल-कूद मचाती ! सत्ती क्या कोई भी युवा लड़की आश्चर्य व उल्लास से भरी अपने चारों ओर के नज़ारों को देखती, स्फुरित होती | बस, एक बार रेल में बैठी थी सत्ती, जब स्वर्ण मंदिर के दर्शन करने अपने परिवार के साथ गई थी | पूरे रास्ते रेल की छुकर-छुकर के साथ टप्पे गाती रही थी, चौदह बरस की सत्ती ! कैसे ताल दे रही थी छुकर-छुकर करती गाड़ी ! अक्सर उसके टप्पों की कोमल आवाज़ से झूमकर सीटी