कभी अलविदा न कहना - 22 - अंतिम भाग

(18)
  • 8.7k
  • 3
  • 2.4k

कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 22 आज मानव मन के एक और रहस्य को जाना था मैंने... अशोक जी को मैं चाहकर भी भाई का सम्बोधन नहीं दे पा रही थी, क्योंकि मेरे प्रति उनकी भावनाओं से मैं अनजान नहीं थी। यद्यपि मेरे मन में उनके लिए वैसी कोई फीलिंग्स नहीं थीं, फिर भी मैं उनकी भावनाओं का मखौल नहीं उड़ाना चाहती थी। आज जब वे सुनील के बड़े भाई के रूप में मुझसे मिले, मुझे सम्बल दिया तो अनायास ही मैंने भी भाईसाहब का सम्बोधन दे दिया। मैं मेरे बड़े भाई की प्रतिच्छाया उनमें देख रही थी कि अचानक