इज़्तिरार - 3

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(13)जब घर से बाहर निकलता तो गर्मी हो, सर्दी हो, या बरसात हो, एक ताज़ा हवा आती थी।अब मैं किसी बंधन में नहीं था। न सपनों के, न उम्मीदों के, और न ही निर्देशों के !अब मेरे ऊपर किसी की कोई जवाबदेही नहीं थी। मैं होरी और गोबर की तरह खेतों में भी विचर सकता था, चन्दर की तरह विश्व विद्यालय के अहाते में भी। काली आंधी मेरे आगामी अतीत के मौसम को खुशगवार बनाती थी। मुझे सूरजमुखी अंधेरे के भी दिखते थे। ज़िन्दगी को कोई रसीदी टिकिट देने की पाबंदी नहीं थी। मधुशाला भी दूर नहीं थी। कोई शेषप्रश्न