कभी अलविदा न कहना - 8

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कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 8 आज मैं जानबूझकर देर तक बिस्तर पर पड़ी रही। सुना था जिंदगी के कई रंग होते हैं, किन्तु इस तरह जल्दी जल्दी रोज एक नया रंग दिखेगा, मैंने कल्पना में भी नहीं सोचा था। आज मैं घड़ी की टिक टिक और दिल की धक धक दोनों को ही अनसुना कर रही थी। नौकरी करने घर से बाहर निकलने पर नये अनुभव लेने को तैयार थी, परन्तु जिंदगी की इन उघड़ती परतों को देख असमंजस में थी। "मम्मी! दीदी को जगाऊँ? उसे लेट नहीं हो जाएगा आज.." अंशु की फुसफुसाहट कान में पड़ी। "नहीं बेटा!