नीला आकाश - 1

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नीला आकाश (1) सारी धुंध छँट गयी थी। खुशी का ओर छोर नहीं था। दोनों हाथ पैफलाये चक्राकार घूमते हुए वह पूरे आसमान को समेट लेना चाहती थी अपने अंक में। गहरी साँस लेकर पी लेना चाहती थी उन्मुक्त हवाओं को। आज़ादी का उजाला भर लेना चाहती थी अपनी आँखों में। आने वाली खुशी को कैद कर बंद कर लेना चाहती थी मन के द्वार। आस-पास से बेखबर, उन पलों बाँध लेना चाहती थी हमेशा के लिए। आकाश के रंग में रंगा था उसका नाम भी, नीला। और आकाश! वह तो निर्निमेश निहार रहा था उसे। नन्ही गुड़िया-सी किलकारी भरती