दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 25--स्वाभिमान? अपने परिवार के हर सदस्य के लिए गर्व से फूली रहने वाली सुमेधा महाजन का अपने पति के जाते ही गर्व का गुब्बारा पिचककर हवा में झूलने लगा | जीवन की आपाधापी से बड़े ही स्वाभाविक स्वर में झूमने वाली सुमेधा हतप्रभ हो पुत्रवधू का चेहरा ताकती रह गई । बेटे-बहू के बीच ख़लिश है, ये तो काफ़ी दिन पूर्व आभास हो चुका था किंतु बच्चों पर माँ-बाप के संबंधों का ख़राब प्रभाव पड़ रहा था जो स्वाभाविक ही था ! बच्चे नहीं कहते उन्हें जन्म दो, अपने को गौरवान्वित महसूस करने के लिए तुम