रिश्ते -ज़रूरत या ईश्वरीय देन

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बहुत दिनो से सोच रहा था कि आज कल के रिश्तों में वो बात क्यूँ नहीं हैं जिस रिश्तों की कहानी मैं अपने पापा माँ या फिर दादादादी से सुनता था ...क्यों अब लोगों की रिश्ते निभाने की चाह समाप्त होने लगी है और धीरे धीरे एकलता की और बढ़ रहे है ।सच कहु तो एसा लगता है जैसे इंसानो ने इलेक्ट्रॉनिक्स साधनो से एक नई रिश्तों की शुरुआत किया है। ऐसा क्या हो गया है कि अब रिश्तों का महत्व कम हो गया है या कहूँ तो आने वाले समय में समाप्त ही न हो जाये?!!! रिश्तों की शुरुआत