मुख़बिर - 17

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मुख़बिर राजनारायण बोहरे (17) हिकमत कृपाराम ने इस तरह किस्सा शुरू किया मानो वह किसी और की कहानी सुना रहा हो.... कृपाराम एक सीधासादा और मेहनती चरवाहा था । बचपन से ही तेज अक्कल वाला था, लेकिन गांव में स्कूल न था सो बचपन में पढ़-लिख न सका । पिता ने जैसे-तैसे करके बचपन में ही विवाह कर दिया था और घर में दो बच्चा खेल रहे थे तब कृपाराम के। अपने पिता गंगा घोसी के साथ कृपाराम दिन भर अपने ढोर-बखेरू चराता रहता । शाम को कारसदेव के चबूतरे पर ढांक बजाता, ग्वालों के देवता कारसदेव की प्रशंसा में