सबरीना - 23

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सबरीना (23) ‘सुनो सबरीना! कब्रें खोदने का फितूर ना पालो‘ रात गहरा गई थी। हर रोज से ज्यादा काली और डरावनी लग रही थी। हर कोई चुप बैठा था, घड़ी की टिक-टिक रात के सन्नाटे को तोड़ रही थी। कभी-कभार किसी के सिसकने की आवाज से खामोशी टूट जाती थी। प्रोफेसर तारीकबी मरे कहां थे, वे तो सो रहे थे, जैसे गहरी नदंी में हों, चेहरे पर कोई सिकन नहीं, कोई ऐसा संकेत नहीं कि वे अब यहां नहीं हैं। जारीना ने सारी हिम्मत समेटी और डाॅ. मोरसात से पूछा कि प्रोफेसर तारीकबी को घर तक कैसे ले जाया जाएगा।