फ़ैसला - 7

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फ़ैसला (7) आंख खुली तो फिर दूसरे दिन की सुबह, भास्कर देव नीले आसमान में अपनी स्वर्णिम आभा बिखेरते हुए। एक किरण को शायद आदेशित उन्होंने ही किया होगा। तभी तो वह मेरे कमरे की खिड़की के दराज के रास्ते मुझ तक पहुंच गयी और मुझे नींद से जगा दिया। मैंने अपनी आंखें मलते हुए भास्कर देव को बैठे ही बैठे प्रणाम किया और मन ही मन प्रार्थना की कि हे! अन्धकार को दूर करने की असीम क्षमता वाले भगवान भास्कर क्या आप मेरे पित कहलाने वाले इस पुरुष के शरीर में व्याप्त दुर्गुणों को दूर नहीं कर सकते हो।