डॉमनिक की वापसी - 32

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शिमोर्ग को आज अपने चारों ओर पहाड़ों का हरा रंग देखकर बचपन की होली याद आ रही थी, ऐसा ही गहरा रंग पोत देते थे, एक दूसरे के मुँह पे, कई-कई बार धोने पर भी नहीं उतरता, लगा रह जाता था, कानों और नथुनों के किनारों पर। शिमोर्ग के सोने की आभा लिए गोरे रंग पर वह कई दिनों तक चढ़ा रहता। जब तक रंग पूरी तरह उतर नहीं जाता, माँ उससे बात तक नहीं करती और पिताजी हमेशा माँ के लाख मना करने पर भी वही रंग लाकर देते। गहरा हरा रंग। बहुत पक्का रंग होता था, तब। बिलकुल हिमाचल के पहाड़ों पर फैली इस हरियाली की तरह। पिता कहते थे इन पहाड़ों का रंग एक बार चढ़ जाए, तो फिर आसानी से नहीं उतरता, गहरे तक मन-साँस में बैठा रहता है. उनकी पंक्तियाँ- ‘बस साँस एक गहरी साँस अपने मन की एक पूरी साँस हरियाली की हरी साँस अपनी माटी में सनी साँस’ जैसे आसपास की हवा में तैर रही थीं..