सबरीना - 8

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सुशांत ने अपनी बात शुरू करने के लिए स्वामी विवेकानंद से शब्द उधार लिए जो उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन में अमेरिकियों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किए गए थे। सभागर में शून्य अपने पूरे विस्तार में मौजूद था, लेकिन ज्ञान की आभार और उसे पाने की चाहत की ऊर्जा से हर कोना दीप्त हो रहा था। सभागार का आकार भले ही बहुत बड़ा था, लेकिन उसे इस तरह बनाया गया था कि किसी भी वक्ता को ये अहसास हो कि वो किसी कक्षा में पढ़ा रहा है। उज्बेकी संस्कृति वहां मौजूद रंगों से लेकर चेहरों तक दमक रही थी। सुशांत ने हल्की मुस्कुराहट के साथ पूरे सभागार को देखा, असल में वो ये मैसेज देना चाह रहा था कि उसके मन में किसी प्रकार की घबराहट और संकोच नहीं है। उसने बात शुरू की-