आदत से मजबुर

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आज सुबह से मीनू कुछ उदास सी दिखाई पड रही थी। घरके कामकाज में भी उसका ध्यान न था। बार बार बरतन पटकने की आवाज़े आ रही थी। बीच बीच में पति को भी डांट पड़ रही थी!“कितनी बार कहा तुमसे ये जूते यहा मत रखा करो। ये कोई जूते रखने की जगह हे? तुम कभी अपनी आदतों से बाहर नहीं आओगे! किताबे भी फैला कर रखी हे में क्या नॉकर हूँ तुम्हारी जो पूरा दिन यही सब करती रहु।“ मीनूने पैर से धक्का देकर संजय के सोफा के पास रखे हुए जूतो को घरकी बाहर दरवाजे तक हटा दिया।