डॉमनिक की वापसी - 27

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सुबह जब रेबेका की आँख खुली तो उस कमरे की गर्माहट किसी घोंसले सी लगी. मन किया फिर से चादर में दुबक के सो जाए. पर देखा कि दीपांश पहले ही उठ चुका है और किचिन में है, तो वह चादर लपेट कर उठी और अपना गाउन ढूँढने लगी. कुछ देर में दो कप चाय के साथ दीपांश किचिन से बाहर आ गया. चाय पीकर रेबेका फिर वापस बिस्तर में लुढकने को थी कि दीपांश ने कंधे के सहारे से उसे रोकते हुए कहा ‘हमें बारह बजे तक अनंत जी के बताए पते पर पहुँचना है.’ रेबेका बच्चों की तरह ठिनकते हुए उठी और बाथरूम में चली गई. कमरे से निकलते-निकलते साढ़े दस बज गए थे. दो-तीन दिन की बारिश के बाद बादल छट गए थे. आसमान बिलकुल साफ़ था.