डॉमनिक की वापसी - 25

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चलते-चलते दीपांश कुछ सुस्त हो गया था। रेबेका भी थक गई थी। दोनो के चेहरे से लग रहा था कि वह एक दूसरे से कहना चाह रहे हों कि ये किस काल खण्ड की कहानी पूरी करने अनंत ने हमे यहाँ भेज दिया। इन कहानियों से उलझते हुए हमारे अपने जीवन की कौन सी गुत्थी सुलझने वाली है। वह सुबह की बस से आगरा और अब कई साधन बदल कर दोपहर बाद यहाँ पहुँचे थे. यहाँ पहुँच के लग रहा था जिस जगह के बारे में अनंत ने लिखा था, वह जगह और उस तक पहुँचने के निशान समय की गर्त में कहीं बिला गए हैं। वहाँ कुछ था तो बादलों से छनकर आती धूप में चमकता, मीलों दूर खड़ा सफ़ेद संगमरमर का ताज़ महल और उससे छिटक के थोड़ी और दूर एक मैली चादर-सी बिछी, कहीं-कहीं पुरानी चांदी सी झिलमिलाती, यमुना नदी।