डॉमनिक की वापसी - 20

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श्रीराम सेंटर में विश्वमोहन के नाटक 'डॉमनिक की वापसी' का पचासवाँ शो। समय से आधा-एक घंटे पहले से ही दिल्ली के तानसेन मार्ग पर अच्छी खासी गहमा-गहमी, हॉल के बाहर हाथों में टिकिट या पास लिए घण्टी बजने की प्रतिक्षा में खड़े लोग। नाटक के निर्देशक विश्वमोहन मुख्य द्वार के बाईं ओर एक कोने में पत्रकारों से मुख़ातिब- ‘देखिए सचमुच ‘दुनिया एक रंगमंच है'…और इसमें हरपल, एक साथ असंख्य नाटकों का मंचन होता है, फिर भी जीवन- जीवन है और नाटक- नाटक,…या कहें कि नाटक जीवन होते हुए भी, उससे इतर एक कला भी है, जीवन के भीतर सतत आकार लेता एक सपना भी है, जीविका भी है, और कभी-कभी जीवन के अंधेरे रास्तों में टिमटिमाता, हमें रास्ता दिखाता दीया भी है.’