डॉमनिक की वापसी - 15

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यह पहला मौका था जब विश्वमोहन के प्रोडक्शन हाउस को इतना बड़ा स्पॉन्सर मिला था और उसपर नाटक भी ख़ासा सफल हो रहा था। अब कलाकार पहचाने जाने लगे थे। धीरे-धीरे नाटक में भी इनाम, इक़राम, मेहनताना, या उसे जो भी चाहे कहें, बढ़ गया था. अब सबके पास पैसा आने भी लगा था और वह दिखने भी लगा था। फांका-मस्ती के दिन बीते दिनों की बात हो चले थे। मंडली के अभिनेता गाहे-बगाहे अख़बारों के रंगीन पन्नो पर नज़र आने लगे थे। सबके हाथों में फोन चमकने लगे थे। सबकी-सबसे जब चाहे बात होने लगी थी। दीपांश गाँव में सुधीन्द्र को पहले से बढ़ा के मनीऑर्डर करने लगा था।