कहानी--- राजनारायण बोहरे चलन तुलसा खरे साहब के बंगले के लॉन की देखभाल करता है । आज भी रोज की तरह अपना काम काज निपटाकर आया तो उनके सामने जमीन पर ही बैठ गया । बोला ‘साहब , मैं परसों-तरसों तक काम करने नहीं आ सकूंगा ।’ ‘ क्यों ऐसा क्या काम आ गया । तुम तो कभी छुट्टी नहीं माँगते ’ एक सहज चालाक मालिक की तरह उन्होने पूछ ही लिया । ‘ साहब मेरी छोकरी भाग गई कल के भगोरिया मेले में ..! ’ निर्पेक्ष सा तुलसा बोला था तो