डॉमनिक की वापसी - 13

  • 3.9k
  • 2
  • 1.4k

बाज़ार कला पर चढ़ा जा रहा था, या कला बाज़ार में घुसकर ख़ुद अपनी बोली लगा रही थी, कहना मुश्किल था। लगता था दोनो एक दूसरे से उलझ रहे हैं और हारना कोई नहीं चाहता। पर इतना तो तय हो ही चुका था कि इस समय में, एक दूसरे के बिना, दोनों में से किसी का निर्वाह संभव नहीं है। और शायद इसीलिए... ऑडिशन वाले दिन, ऑडीटोरियम के बाहर खासी चहल-पहल थी। लॉबी में विश्वमोहन, रमाकान्त और दो नए चेहरे, एक स्त्री-एक पुरुष, टेबल को घेर कर बैठे थे। अब तक के ऑडिशन में जो भी अभिनय के नाम पर वहाँ अपना जौहर दिखा कर गए थे। वे उससे उबे हुए थे। जो लोग चुन लिए गए थे, वे अपने चेहरों पर सफलता का भाव लिए अलग पंक्ति में दाहिनी तरफ़ सीढ़ियों पे बैठे थे, उनमें अशोक और शिमोर्ग भी थे।