डोर – रिश्तों का बंधन - 4

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नयना का फ़ोन बहुत देर से बज रहा था। दो बार तो बेचारा थक कर चुप भी हो गया। नयना आटा लगा रही थी,'आज किसे मेरी इतनी याद आ रही है,' उसने देखा फ़ोन की स्क्रीन पर उसकी कलीग रेंवती का नंबर फ्लैश हो रहा था। हैलो, ऐसी कौनसी आफत आ गई की तुम कॉल पर कॉल किए जा रही हो, अभी थोड़ी देर पहले ही तो बिछड़े थे। थोड़ा सब्र भी रख लिया करो, आटा सने हाथों से नयना ने इस बार फ़ोन उठा ही लिया। बात ही ऐसी है। मुझे पता था ना तो तुम्हारे पास फ़ुर्सत है और ना ही तुम्हारी याददाश्त ही इतनी अच्छी है कि जरूरी बातें तुम्हें याद रहे इसलिए सोचा मैं ही बता दूं। जल्दी बको, सच में बिज़ी हूं। खाना बना रही हूं अगर तुम्हारी बातों में उलझ गई तो सब्जी जल जाएगी। ऐसे नहीं मैडम, इतनी बड़ी ख़बर मैं यूं ही नहीं सुनाने वाली। पहले ये बताओ बदले में मुझे क्या मिलेगा। जानती हूं तुम परले दर्जे की कंजूस हो। पर इस बार तुम्हारा पाला रेंवती से पड़ा है, बिना पार्टी लिए मैं तो तुम्हें नहीं छोड़ने वाली।