डोर – रिश्तों का बंधन - 3

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3) मोबाइल में बजे अलार्म से नयना की तंद्रा टूटी। सुबह हो गई थी। इस बीती रात में उसने अपने जीवन के पिछले कुछ साल फिर से जी लिए, और फिर उन सालों को शोभित की यादों के साथ अपने दिल के एक अंधेरे तहख़ाने में बंद कर दिया। अब वह अपने नये जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी। नयना धीरे से दरवाज़ा खोल कर बाहर आई, विवेक के दोस्त जा चुके थे, अब छत पर शांति थी, पर रात को उन लोगों ने जो हुड़दंग मचाया था उसके निशान अब भी यहां वहां बिखरे पड़े थे। पूरी छत पर गंद