डॉमनिक की वापसी - 9.

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दीपांश उस चट्टान पर कुछ देर और हिमानी के साथ बैठता तो उसे बताता कि आज उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था। आज उसे अपनी मंडली और पन्द्रह और दूसरे गाँवों से इकट्ठे हुए लोगों के साथ वर्षों से चली आ रही लड़ाई के लिए, लाखों लोगों का अधूरा सपना पूरा करने के लिए, अपने माँ-बाप को दिया बचन निभाने के लिए, दिल्ली की संसद के भीतर बैठी गूँगी-बहरी सरकार के आगे अपने पहाड़ों की बात रखने के लिए जाना था। उसका वहाँ न होना उसे ऐसा गुनाह लग रहा था जिसके लिए वह अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर सकेगा। पर अब जैसे हर संवाद की संभावना समाप्त हो चुकी थी,... नदी के दोनों किनारे उससे दूर हो चुके थे। नदी और दूर गिरते झरने की आवाज़ें उसे सुनाई नहीं दे रही थीं।