अंशकथा - 2

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कथा 01- पुराना बरगद का पेड़अरे सुनो ! सुनो तो !आखिर मैं भी इसी समाज का सदस्य हूँ । फिर सबने मुझे यूँ अकेला क्यों छोड़ दिया । क्या मैंने किसी का कुछ बिगाड़ा था या फिर किसी को कुछ कह दिया ? जिससे सब मुझझे नाराज़ हैं और कोई मुझझे नाता नहीं रखना चाहता है। मैं बिल्कुल अकेला सा पड़ गया हूँ । पर मुझे अब भी याद आता है , वो समय जब गाँव के सभी बच्चों को मैं उनके चेहरे के साथ-2 उनके पुकारु नाम से जानता था । जैसे वो कल्लू , वो रामू , वो