अगले दिन सुबह मेसेंजर परसुम्मी- असस्लामु अलैकुम लेखक साहब।मैं- व अलैकुम अस सलाम,खेरयत हैं शायरा मोहतरमा ?सुम्मी- जी अल्लाह का शुक्र,आप बताएं ?मैं- जी मे भी बेहतर,वैसे आप किस सिटी से हैं ? सुम्मी- हम आप के शहर मुरादाबाद से ही हैं। मैं- अरे वाह,कमाल की बात है,एक शहर में रहते हैं और मुलाक़ात मातृभारती के ज़रिए हुई।सुम्मी- जी उसका क्रेडिट भी हमें दीजिये मातृभारती को नही,हम मेसेज नही करते तो कैसे मिलते?मैं- हाहाहा जी जी आप भी सही हैं,हम शायरों से बहस नही करते। सुम्मी- क्यों? मैं- चुभते हुए तीरों से अल्फाज़ो को फूलों में लपेट कर मारते हैं शायर,इसलिए हम शायरों से