दीप शिखा - 8

  • 5.4k
  • 2.4k

बुढिया ने सिर ऊपर उठाया, अगल-बगल सब निराश, कुम्हलाए चेहरे ऐसे लगा सांत्वना देने की कोशिश कर रहे हों जैसे प्रेम व सहानुभूति से गीता ने उसके कंधे को पकड़ रखा था “अम्मा ! आपको कुछ हो गया है क्या ? आप इतना थकी और निराश क्यों लग रही हो ?” पेरुंदेवी कुछ न बोली जीवन में जो कठिनाईयां आई उसमें से बच निकलने की ही तड़प और दर्द है ये । “अम्मा ! अम्मा बोलो माँ !” “बोलने को कुछ भी नहीं गीता ? पता नहीं एक हफ्ते से मुझे बहुत थकावट लग रही है ”